Wednesday 28 March 2012

गुजारिश

सभी से छुपाया अपने दिल का राज़,
कि कौन है वो जिस से मुहब्बत कर बैठा,
लबों से कुछ पता न चल पाया उन्हें,
वह आँखें खोलने की जुर्रत कर बैठा;

पता करना चाहा सभी ने ख़त-ए-उल्फत का हिसाब,
कि कितने कलम घिस दिए हैं  उसने,
सब तलाशा उन्होंने, कुछ पता न चल पाया,
वह दिल धड़काने की हिमाक़त कर बैठा;

लबों से उसका नाम छूते ही हो रही थी लर्जिश,
फिर भी उसे पा जाने की ख्वाहिश कर बैठा,
सोचा दीवानगी में इश्क बदनाम ना हो जाए कहीं,
वह साँसें रुक जाने की गुजारिश कर बैठा....


ख़त-ए-उल्फत = प्रेम पत्र , लर्जिश = कँपकँपाहट

Thursday 22 March 2012

महसो-सात

उनसे कुछ ना बता पाने की बेबसी है,
नहीं तो, हर क़तरा-ए-इश्क उनकी कायनात में है;

बे-शर्म दिल कर बैठा, कितने इज़हार-ए-मोहब्बत,
अब जाना, असली मज़ा तो उनसे इश्क के सबात में है;

आलम बेख़ुदी का इस कदर है, अब तो हम पर,
हिद्दत होती है माहताब से, और आफ़ताब रात में है;

ख्वाहिश नहीं है मौत की, उनके बिना भी, अब तो,
मेरी ज़िन्दगी तो अब उनके अहसानात में है;

उनकी कैफ़ियत क्या ही बताएं आपको,
वो तो निहा हमारे ज़ज्बात में है;

हंसी तो आएगी ही आपको हर लम्हा,
आपका दिल तो बस तहक़ीक़ात में है;

"परिंदा" नहीं लेगा इम्तिहाँ, कभी, अपने इश्क का,
उनसे अहद-ए-वफ़ा तो हर बात में है....





महसो-सात = feelings सबात = स्थायित्व, हिद्दत = गर्मी, माहताब = चाँद, आफ़ताब = सूरज, कैफियत = स्तिथि, निहा = confined, अहद-ए-वफ़ा = प्रेम की प्रतिज्ञा

Sunday 11 March 2012

ज़ज्बात

यह आलम खामोश सा क्यूँ हुआ है,
यह दीवाना मदहोश सा क्यूँ हुआ है,
अंदाज़-ए-बयाँ कुछ खिलाफ़ती से हैं,
यह पागल सरफ़रोश सा क्यूँ हुआ है;

अनकही तमन्नाओं की तस्वीर सजा रखी है,
जाने कब सुनी जायेगी....
ऐसी रज़ा रखी है,
मंजिल की तलाश में चल पड़ा है मुसाफिर,
यह राही खानाबदोश सा क्यूँ हुआ है;

मिन्नतकश-ए-यार था नौजवाँ अपना,
इतने रक़ीबों से घिरा होगा, सोचा ना था,
जाने किस राह पर निकल चुका है ग़ज़लसरा,
यह "परिंदा" एहसान फ़रामोश सा क्यूँ हुआ है.....
कर ले किसी के प्यार की क़दर,
आज है, कल ना हो कोई खबर;

शायद फिर ना मिल सकेगा, उस से,
क्या पता रोयेगा रात भर,
रो अगर दिया,
कोई ना आएगा,
जिस दिल को दुखा रहा है,
वो कहीं चला जायेगा,
तड़पता रह जाएगा तू,
अकेलेपन में,
वो लौट के नहीं आएगा,
ज़रा गौर कर,
कर ले किसी के प्यार की क़दर,
आज है, कल ना हो कोई खबर;


ये एहसान है,
कि कोई तुझे चाहता है,
तुझे अपना हम दम बनाता है,
है तू रूठा, तो मनाता है,
तेरे अश्कों को अपनी साँसों से सुखाता है,
तेरे क़दमों के नीचे पलकें बिछाता है,
ज़्यादा कुछ नहीं चाहता,
बस देख ले तू, आँख भर,
कर ले किसी के प्यार की क़दर,
आज है, कल ना हो कोई खबर;



किया क्या तुने उसके लिए ऐसा,
खुशियों से महरूम कर दिया,
साँसों से ज़्यादा परवाह की तेरी,
तूने तपता सूरज उसके नाम कर दिया,
समझ बैठा वफ़ा
तेरी हरक़तों को,
मानकर खुदा तुझे,
खुद को अनजान कर दिया,
अजनबी बन मिला था तुझसे,
क्यों मोहब्बत कर बैठा राहबर,

सह ना पाया जुदाई तेरे साये की,
इश्क में तेरे
खुद को नीलाम कर बैठा बेसबर,

कर ले किसी के प्यार की क़दर,
आज है, कल ना हो कोई खबर;

अनछुए सवाल

दिन नहीं बीत रहा तेरे बिना, बिताऊँ कैसे;
ख्यालों में तेरे खोया हूँ, बताऊँ कैसे;
कुछ भी लिख देता था, तेरी तारीफ पाने को,
फिर कुछ लिखा है आज, सुनाऊँ कैसे;

अश्क़ सजातें थे नज्मों को मेरी, हमेशा,
इन सूखी आँखों को आज, रुलाऊँ कैसे;

तेरी यादों की बारिश, भिगो रही है ख्यालों को मेरे,
ख़ुशी की मुफ़लिसी को आज, मिटाऊँ कैसे;

तुझसे मोहब्बत है या मेरा पागलपन था,
मेरे नादान दिल को आज, समझाऊँ कैसे;

तेरे शबाब का नशा है, अब तक, हर धड़कन में,
हर धड़कन को शराब से आज, जलाऊँ कैसे;

तेरे लबों को छूने से लग जाती थी आग साँसों में,
उस दबी चिंगारी को आज, सुलगाऊँ कैसे;

चैन मिलता था तेरी आँखों में झाँक लेने से,
डरते हुए दिल को आज, सहलाऊँ कैसे;

तुझे चूमने से क़ायनात पा लेता था मैं,
नजदीकियों के हर लम्हे को आज, भुलाऊं कैसे;

तू पास है, सोचकर, हर फ़िक्र उड़ा देता था मैं,
जुदाई के मनहूस लम्हे को आज, बिताऊं कैसे;

मुस्कान आती थी, तेरे दीदार की हसरत से ही,
रो रहा है "परिंदा" आज, हसाऊँ कैसे...

Monday 30 January 2012

अपने काँधे पे 
हल्का स्पर्श याद है मुझे,
याद है मुझे 
हर एहसास 
जो तेरी आँखों में
ठहरा देखा था,
याद है 
हर पल 
जिस में मेरे दर्द को 
अपना समझा था तुमने,
याद है 
हर वो शिकायत 
जो तेरे लबों पे आई थी;

और इक लम्हा 
अपने सीने में दबा रखा है,
जब इन आँखों ने
तुझे छुआ था,
कुछ सांसें सहेज रखी हैं 
जिन से तुझे जिया था,
कुछ सपने हैं 
साथ देखे थे कभी, 
और तेरी एक मुस्कान 
जैसे खुदा ने 
तोहफा दिया था..

Monday 9 January 2012

मेरे चाँद के दीवानें बहुत हैं,
उनकी अदाओं के अफ़साने बहुत हैं,
सोचते हैं की चाहना छोड़ दें उन्हें,
पर उन्हें प्यार करने के बहाने बहुत हैं;

चाहत है इस क़दर की अपना अक्स मेरी आँखों में देख लें,
पर उनके शहर में आइनें बहुत हैं;

उन्हें सोच कर दिल रोशनी से भर जाता है,
पर उनके लिए शामियानें बहुत हैं;

वक़्त-बेवक्त परेशां करना, फितरत है उनकी,
उन्हें नहीं पता, हमारे सब्र के पैमानें बहुत हैं;

टटोलते हैं दिल इस तरह, तीर सी निगाहों से,
इश्क के इम्तिहाँ हम पर, आजमाने बहुत हैं;

खुलकर कभी कह नहीं पायेंगे, दिल की बात,
हमारे मेहेरबां ज़नाने बहुत हैं;

आ जायें, कभी वो हमारे आग़ोश में,
"परिंदे" के दिल में आशियाने बहुत हैं..........